लहरों का उठना,
नाव का डगमगाना,
पतवार का छूटना,
कुछ भी नहीं होता -
पूर्वनियोजित ।
फिर भी मन सोचता है,
स्पर्श से पहले -
मन बहुत सोचता है...!!!!
1215pm Jan 01,2008. California
Saturday, June 21, 2008
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एहसास-ए-इन्तेखाब... जुबां से नहीं.... आँखों से..दिल से..
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