Saturday, June 21, 2008

जुगलबंदी

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हर एक बूँद से बढ़ती है सिहरन मेरे बदन की


पूछो बारिश की इन बूंदों को मज़ा आता क्या है...???


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थोड़ी और पिला साकी के मैं होश में हूँ अभी


जिद ना कर जानने की तुझसे मेरा नाता क्या है ??


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जला ही दूंगा आशियाँ मेरा जो तुम न रही,


एक मकाँ के सिवा मेरा जाता क्या है...??।


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पूछूंगा मैं भी खुदा से एक दिन जरूर ।


यूँ रह रह कर, गैरत मेरी जगाता क्या है ??


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हैराँ न हो यूँ, देख अक्स अपना आईने में.....


ये मेरी नज़र है, और नज़र आता क्या है ??


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