कुछ नहीं रक्खा है
यूँ खामोशी से गुजर जाने में
यादें भी खो जाती हैं
रफ़्ता रफ्ता गुजर जाने में
अश्कों से नहीं धुलती
किताब-ए-माजी के लघ्जिश
कुछ दोस्तों के दामन साथ हों
उंगलियों में सिमट आती हैं वक्त,
जिन्दगी और याद ये सफर
फिर - पलों में गुजर ही जाती है... !!
Monday, June 30, 2008
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