राख़ के ढेर में दबे
शोलों को ने छेड़ों तुम,
समा की एक बूँद ही
काफी होगी उनके वास्ते !
छेड़ना चाहते हो तो
छेड़ो वक्त कि आंधी को,
जो बनाती है अंगार -
बुझते हुए शोलों को...!!!!
Friday, June 20, 2008
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एहसास-ए-इन्तेखाब... जुबां से नहीं.... आँखों से..दिल से..
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