ये मैं बह जाता हूँ ज़ज्बातों में,
या तेरे ख़याल तर कर जाते हैं मुझको॥
कुछ तो है इस कमबख्त आग में...
जो तुझे भी जलाती है...
और मुझे भी जला रही है मुसलसल..
Monday, June 30, 2008
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एहसास-ए-इन्तेखाब... जुबां से नहीं.... आँखों से..दिल से..
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