Saturday, June 21, 2008

मन (स्पर्श -२)

विवेक को हराना,
दलीलों को ठुकराना,
ज़ज्बातों को बहकाना,
सब कुछ समझता है मन...
फिर भी -
बहकता है मन
कोई खूबसूरत गुनाह
करने को मचलता है मन
और फिर -
ये तसल्ली भी देता है मन -
सब कुछ पूर्वनियोजित था -
मेरी किस्मत में यही लिखा था !!!

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