Saturday, June 21, 2008

वस्ल-ए यार

मैं नहीं करता
अल्फाजों की जुगाली
और ना ही है मेरे पास
ख़्वाबों के चटकते रंग
मुझे तो आसमाँ में दिखते हैं -
अपनी पहुँच से दूर सितारे और चाँद
बचपन कि तरह...!!

मैं नहीं पढ़ता ज्ञान की
बड़ी बड़ी पोथी
और ना ही है मेरे पास
दुनियादारी की बहकती दलीलें
इस ज़मीं में मुझे तो दिखते हैं -
झूठे रिश्तों सी अनगिनत राहें
और राहगुजर रोज़ की तरह.....!!!

मैं नहीं जाता कभी
दिल से बड़ी किसी महफिल में
और ना ही है मेरे पास
किसी हुनर का अंजाम।
मुझे तो यहाँ मिलते हैं -
लोग खुद में खोये हुए
मुस्कुराते पुतलों की तरह....!!!

मैं तो बस करता हूँ बस
कुछ छोटे छोटे से काम
और गा लेता हूँ साथ
उनके उनके सुर का कलाम
मुझे तो यूँ मिलते हैं -
खुदाया राम रहीम खेलते हुए बच्चों की तरह....!!!

मैं नहीं लाया देखो
किन्ही दावों का पैगाम
और ना ही हूँ मैं कोई
अलग बिरला इंसान।
मुझे तो तुम दिखती हो -
मेरी उम्र के मानिंद
गुजरेगी अब जो इबादत कि तरह....!!!!

१० दिसम्बर २००७, १२३० रात्रि

1 comment:

  1. अद्भुत......बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी......बहुत शुभकामनाएं....क्या मैं अपने ब्लॉग में आपको लिंक कर सकती हूं?

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