Saturday, June 21, 2008

....इत्माम....

ख़्वाब-ए-रुखसार तेरा
एक सिलसिला बन गया है !
परेशां हो उठ जाता हूँ
कमबख्त तेरी जुल्फें बेहया हैं !!!

ये खिदमत-ए-अकीदत है
जो तुम से ज़ुदा कर गया है !
गौर से देखो आइना -
मेरा अक्स तुमसे अभी मिल कर गया है॥!!

तेरे पास आबाद तन्हाई
मुझ तक पसर गया है !
तुम कहते हो रात तो
अभी बड़े फज़र ही गया है !!

तेरी आँखों का सूनापन
मुझ में उतर गया है !
अपने कांधों से उतार अमानत
देखो चाँद कितना नया है !!

तेरी उँगलियों के चुने तिनके
किसके घर बिखर गया है !(ग़म न कर...)
तेरी तासीर से ही तो
मेरा आशियाँ निखर गया है !!

तेरी पलकों के ख़्वाब
मेरी ज़िन्दगी से बयाँ है !
आगोश से मेरी देखो
मेरे साथ ये सहर नया है !!

तुझे चूम कर देख
वो झोंका सिहर गया है !
गुजरा मेरे पास से
तो तेरी खुशबु बिखेर गया है !!

इक लम्हा जो तुझे
छू कर गुजर गया है !
मेरी उम्र में मुझे
तुझ से लबरेज़ कर गया है !!

कहने को जुदा हैं (तन्हा हैं)
ये फासिला क्या नया है ??
तन्हाई, खुशबू, चाँद, ख़्वाब ...
दरमियाँ हमारे यही तो हमनवां है...!!!

December 17th , 2007. California

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