Saturday, June 21, 2008

सत्य

सूखे वृक्ष की
सबसे ऊंची टहनी पे बैठा
एक खग
शांत।
निहारता नभ कि विराटता
और पंख खोल
उड़ जाता नापने
सीमायें लाँघ सुन आता
अंतरिक्ष का सत्य...
वापस
उसी वृक्ष की ऊंची टहनी पे बैठ
फिर देखता नभ की ओर
अबाध्य गति से -
निरंतर चलता समय
अंतरिक्ष,
नभ और खग के सत्य का साक्षी है।
परन्तु मौन है...!!
अंतरिक्ष मौन है।
नभ मौन है॥ समय मौन है...
सत्य मौन है....
समय ही
सत्य को व्यक्त करने में
पूर्ण सक्षम है...
मुझे मौन बनना है...!!!

३१ दिसम्बर २००७, प्रातः ५.००, कैलिफोर्निया

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