Friday, October 6, 2017
छीटें
Friday, February 4, 2011
कहाँ से लाऊं ??
तुम ही बताओ खुशियों भरे ज़ज्बात कहाँ से लाऊं ??
जा बज़ा भूख और इफ़्लास की सूरत में क़ज़ा फिरती है..
हँसना चाहता हूँ मगर हंसने के हालात कहाँ से लाऊं ??
सूना सूना सा लगता है ज़माना सारा
रोशन रोशन से वो दिन रात कहाँ से लाऊं ??
बयान करता है कोई दिल के नेह कानो में
जो मेरे दिल को हंसा दे मैं वो बात कहाँ से लाऊं ??
अंधेरी राहों में मारे ना जाएँ दिल वाले
ज़ुल्म के ज़बर में तारों भरी रात कहाँ से लाऊं??
तुम ये चाहते हो शब-ओ-रोज़ मुसर्रत से गुजारे जाएँ
तुम ही बताओ झूठी खुशियों के सौगात कहाँ से लाऊं ???
Not sure whose creation is this..read somewhere and it was worth sharing. If anyone can inform the POet..I wud be grateful. Thanks.!!
ख़्वाब सा....
जहां ख़त्म होती हैं...
वो आसमान का दायरा होता है...
उन ही सीमाओं से परे..
एक नयी दुनिया का सिरा होता है..
जो हाथों की उँगलियों में सिमटती नहीं
पलकों में कैद नहीं होती...
बस...जेहन में कौंधती है
और आसमान के दायरे से आँखों में समा जाती है..
धडकनों कि जुम्बिश हवाओं में सरसराती है
बंद पलकों का वो ख़्वाब..
वो ख़्वाबों का मंजर...बस ख़्वाब सा ही होता है..
वहीँ...शायद
आसमान के बाद - शायद...!!!
August 31, 2009
भागम-भाग
धूप का एक छोटा सा टुकड़ा -
अब भी कह रहा है :
अभी दिन ढला नही है..
फिसल गए जो लम्हे
दुआओं कि गिरिफ्त से
उन्हें ढूंढ लाने की कवायद है..
लम्हों की खोज मे..
कभी वक्त से आगे कभी
ख़यालों के पीछे...
बस भागम-भाग चल रही है..!!
January 30, 2008
Monday, June 7, 2010
"ईस्ट इंडिया कंपनी" खरीदा हिन्दुस्तानी ने...

जिस समय ये शानदार घटना हुयी - हमारी मीडिया तथाकथित सानिया और शोएब के निकाह की विडियो बना रहे थे..!!! मीडिया के लिए शायद ये इतनी महत्वपूर्ण घटना नहीं थी...मेरे लिए तो है।
Tuesday, March 10, 2009
जिन्दगी की तस्वीर

Friday, December 26, 2008
मौसी (2)

ये आज के हालात हैं या इनका इम्प्रेशन - इनसे दूर ही रहना चाहते हैं लोग. दुआ-बद्दुआ की बात तो बहुत दूर की है - ये भी शायद हमसे दूर ही अपने आप में खुश ही हैं. माली ज़रूरतें हम तक खींच लाती है और अपने अधिकारों की खानापूर्ति कर लेते हैं ये. कितना यांत्रिक हो गया है सब कुछ. दोनों की दुनिया अपने आप में पूरी है....पर कहीं कुछ तो है - जो दोनों को जोड़ता है..साफ़ साफ़ दिखाई नहीं दे रहा - शायद यही मेरी उलझन का कारण है.
नए मकान में लगभग ३ महीने गुजरने को थे. अक्सर टूर में रहने की वजह से मौसी से रूबरू मुलाकात का कोई मौका हाथ नही आया. सितम्बर में जब मैं दिल्ली से वापस लौटा तो पता चला नानाजी की तबियत कुछ खराब है और वो पास के अस्पताल में भर्ती हैं. तृप्ति से अक्सर नानाजी खूब बतियाते थे. मैं जब भी कहीं टूर पर होता, मुझे पीछे तृप्ति के अकेले होने की चिंता कभी नहीं हुयी. अक्सर मेरे लौटने पर कहा करती, " पता है मुन्ना, तुम्हारे जाने के बाद नाना-नानी इतना ख़याल रखते हैं कि कभी लगा ही नहीं माँ-बापी से दूर रह रही हूँ. और बस नानी ने ये कहा, नाना ने ये बांटा...मैं बस ध्यान से सुनता और उनका कृतज्ञ होता जाता.
पंद्रह दिनों में सबकुछ सामान्य सा हो गया था, फिर भी पूरे घर में यूँ लगता जैसे सिर्फ खामोशी ही इधर से उधर फिरा करती है. गिने चुने एक दो मेहमान ही रह गए थे. सभी घर के माहौल को यथासंभव अपने हलके-फुल्के चुटकुलों, ठहाकों एवं नानाजी की कुछ चुटीली यादों के सहारे सामान्य बनाने की कोशिश में लगे रहते.
Thursday, December 25, 2008
मौसी (1)

Wednesday, December 17, 2008
ख्वाब (२ )

कल रात
कुछ बारिश की बूंदों को
अठखेलियाँ करते मैंने देखा..
रूबरू हुईं - तो कहने लगी....
तुम बरसते क्यूँ नही ??
आओ..बरसो, बरसो हमारे साथ.
तभी तो रीते होओगे
और जी सकोगे कुछ नया नया..
अपनी जद्दोजहद में
ना ही जिस्म में समेटा उन्हें
ना ही बरसा उनके साथ..
वो फिर भी बरसती और खेलती रही
मेरे अकेलेपन को भरती रही..
यकायक कुछ सुर्ख बूँदें देखी मैंने -
और चिढाती हुयी सी बाक़ी सब.
कुछ पीली कुछ लाल..
खेलती हुयी उनके साथ
उनमे समा गयी..!!!
आँखें खुली जब...
सवेरे देखा -
तो डायरी खुली पडी थी..
कुछ पन्ने फटे हुए थे..
और कुछ धुले हुए थे..
पता नहीं -
ख्वाब था शायद
या मेरा भरम..
पर आज मन बहुत हल्का सा है..!!!!
1:39 pm San Diego California
Monday, December 15, 2008
चिंगारी
अजीब कशमकश है -
ये उम्मीदें और ज़हनी ख़याल
मुझे जीने नहीं देंगे..ख़यालों को
जिन्दगी हमेशा मिल जाती - तो क्या बात थी..!!
बाहर ख्वाब बरस रहे हैं..
इस खून जमा देने वाली ठण्ड में
रूह मेरा बदन तापना चाहती है
आग लगाने को चिंगारी कहाँ से लाऊं ?
हाथों की लकीरें तो तुम्हारी हैं
तमन्नाओं की जब जली थी होली -
दिल ने धड़कना बंद कर दिया था..!!
और जब दिवाली आयी थी -
तेरे घर के दीयों के बीच -
ये दीदे रक्ख आये थे
के रोशनी कम न होने पाए
क़द्र की होती कभी रिश्तों की..
तो इस ठण्ड को आज हम ओढ़ लेते -
कुछ देर बाहर भीग कर
ख़्वाबों को जिस्मों में समेट लाते..
के रूह को सुकून नसीब हो जाता..
नज़रों से क़दमों तक
और जुबां से ख़यालों तक -
कुछ भी तो मेरा कभी न हुआ..!!
ज़हन में सुलगाता हूँ चिंगारी
के जल उट्ठे ये ज़िस्म..
सदियों से ठिठुरते रूह को आग मिले...
और खुदा के आँखों से बरसते ख्वाब
रुखसत करे मुझे इस ज़मीन से -
के मैं तमाम -
ज़र्रा ज़र्रा लिपटूगां तुम से
इन हवाओं के साथ -
के आसमाँ के आगोश में
रूह को ताबीर मिले..!!
ज़हन में चिंगारी अब सुलगने लगी है...!!!
8 pm California