Monday, December 15, 2008
चिंगारी
अजीब कशमकश है -
ये उम्मीदें और ज़हनी ख़याल
मुझे जीने नहीं देंगे..ख़यालों को
जिन्दगी हमेशा मिल जाती - तो क्या बात थी..!!
बाहर ख्वाब बरस रहे हैं..
इस खून जमा देने वाली ठण्ड में
रूह मेरा बदन तापना चाहती है
आग लगाने को चिंगारी कहाँ से लाऊं ?
हाथों की लकीरें तो तुम्हारी हैं
तमन्नाओं की जब जली थी होली -
दिल ने धड़कना बंद कर दिया था..!!
और जब दिवाली आयी थी -
तेरे घर के दीयों के बीच -
ये दीदे रक्ख आये थे
के रोशनी कम न होने पाए
क़द्र की होती कभी रिश्तों की..
तो इस ठण्ड को आज हम ओढ़ लेते -
कुछ देर बाहर भीग कर
ख़्वाबों को जिस्मों में समेट लाते..
के रूह को सुकून नसीब हो जाता..
नज़रों से क़दमों तक
और जुबां से ख़यालों तक -
कुछ भी तो मेरा कभी न हुआ..!!
ज़हन में सुलगाता हूँ चिंगारी
के जल उट्ठे ये ज़िस्म..
सदियों से ठिठुरते रूह को आग मिले...
और खुदा के आँखों से बरसते ख्वाब
रुखसत करे मुझे इस ज़मीन से -
के मैं तमाम -
ज़र्रा ज़र्रा लिपटूगां तुम से
इन हवाओं के साथ -
के आसमाँ के आगोश में
रूह को ताबीर मिले..!!
ज़हन में चिंगारी अब सुलगने लगी है...!!!
8 pm California
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के मैं तमाम -
ReplyDeleteज़र्रा ज़र्रा लिपटूगां तुम से
इन हवाओं के साथ -
के आसमाँ के आगोश में
रूह को ताबीर मिले..!!
ज़हन में चिंगारी अब सुलगने लगी है...!!!
बहुत खूब ,दोस्त बहुत खूब......पूरी नज़्म एक इक रौ में बही.....
डॉ. साहब..शुक्रिया..
ReplyDeletesachmuch kaabil-e-taaref........
ReplyDeletekeep posting.
sachmuch kaabil-e-taaref........
ReplyDeletekeep posting.
Mai wahee alfaaz dohraane jaa rahee thee,ki, dekha, Anuragji ne mere pehle wo kaam kar diya hai..khair ham is qaabil nahee ki, unkee yaa aaokee rachnaonpe tippanee karen..aapne to meree zubanko aur haath donoko taale laga diye hain...!
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