बिलखती रोती कराहती हुयी सी इस दुनिया में
तुम ही बताओ खुशियों भरे ज़ज्बात कहाँ से लाऊं ??
जा बज़ा भूख और इफ़्लास की सूरत में क़ज़ा फिरती है..
हँसना चाहता हूँ मगर हंसने के हालात कहाँ से लाऊं ??
सूना सूना सा लगता है ज़माना सारा
रोशन रोशन से वो दिन रात कहाँ से लाऊं ??
बयान करता है कोई दिल के नेह कानो में
जो मेरे दिल को हंसा दे मैं वो बात कहाँ से लाऊं ??
अंधेरी राहों में मारे ना जाएँ दिल वाले
ज़ुल्म के ज़बर में तारों भरी रात कहाँ से लाऊं??
तुम ये चाहते हो शब-ओ-रोज़ मुसर्रत से गुजारे जाएँ
तुम ही बताओ झूठी खुशियों के सौगात कहाँ से लाऊं ???
Not sure whose creation is this..read somewhere and it was worth sharing. If anyone can inform the POet..I wud be grateful. Thanks.!!
Friday, February 4, 2011
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