Friday, February 4, 2011

ख़्वाब सा....

नज़रों की सीमायें
जहां ख़त्म होती हैं...
वो आसमान का दायरा होता है...
उन ही सीमाओं से परे..
एक नयी दुनिया का सिरा होता है..
जो हाथों की उँगलियों में सिमटती नहीं
पलकों में कैद नहीं होती...
बस...जेहन में कौंधती है
और आसमान के दायरे से आँखों में समा जाती है..
धडकनों कि जुम्बिश हवाओं में सरसराती है
बंद पलकों का वो ख़्वाब..
वो ख़्वाबों का मंजर...बस ख़्वाब सा ही होता है..
वहीँ...शायद
आसमान के बाद - शायद...!!!

August 31, 2009

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