Friday, February 4, 2011

कहाँ से लाऊं ??

बिलखती रोती कराहती हुयी सी इस दुनिया में
तुम ही बताओ खुशियों भरे ज़ज्बात कहाँ से लाऊं ??

जा बज़ा भूख और इफ़्लास की सूरत में क़ज़ा फिरती है..
हँसना चाहता हूँ मगर हंसने के हालात कहाँ से लाऊं ??

सूना सूना सा लगता है ज़माना सारा
रोशन रोशन से वो दिन रात कहाँ से लाऊं ??

बयान करता है कोई दिल के नेह कानो में
जो मेरे दिल को हंसा दे मैं वो बात कहाँ से लाऊं ??

अंधेरी राहों में मारे ना जाएँ दिल वाले
ज़ुल्म के ज़बर में तारों भरी रात कहाँ से लाऊं??

तुम ये चाहते हो शब-ओ-रोज़ मुसर्रत से गुजारे जाएँ
तुम ही बताओ झूठी खुशियों के सौगात कहाँ से लाऊं ???

Not sure whose creation is this..read somewhere and it was worth sharing. If anyone can inform the POet..I wud be grateful. Thanks.!!

ख़्वाब सा....

नज़रों की सीमायें
जहां ख़त्म होती हैं...
वो आसमान का दायरा होता है...
उन ही सीमाओं से परे..
एक नयी दुनिया का सिरा होता है..
जो हाथों की उँगलियों में सिमटती नहीं
पलकों में कैद नहीं होती...
बस...जेहन में कौंधती है
और आसमान के दायरे से आँखों में समा जाती है..
धडकनों कि जुम्बिश हवाओं में सरसराती है
बंद पलकों का वो ख़्वाब..
वो ख़्वाबों का मंजर...बस ख़्वाब सा ही होता है..
वहीँ...शायद
आसमान के बाद - शायद...!!!

August 31, 2009

भागम-भाग

कमरे के कोने से
धूप का एक छोटा सा टुकड़ा -
अब भी कह रहा है :
अभी दिन ढला नही है..
फिसल गए जो लम्हे
दुआओं कि गिरिफ्त से
उन्हें ढूंढ लाने की कवायद है..
लम्हों की खोज मे..
कभी वक्त से आगे कभी
ख़यालों के पीछे...
बस भागम-भाग चल रही है..!!

January 30, 2008