Saturday, August 30, 2008

पत्थर

मैं तराशता गया खुद को
सफीने रोशन की तरह
रकीबों को भी कहाँ इल्म था..
उनके पत्थर पे लिखे पैगाम का...

7 comments:

  1. बहुत खूब दोस्त......

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  2. शुक्रिया अनुराग जी, रोहित.

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  3. ग़ालिब ने कहा था
    संग उठाया था के सर याद आया
    मगर आप ने यह जो लिखा :
    रकीबों को भी कहाँ इल्म था..
    उनके पत्थर पे लिखे पैगाम का...

    उसे पढ़ कर कहना पड़ेगा के :
    संग उठाया था के पैगाम याद आया

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  4. शुक्रिया हैदराबादी साहब..
    अच्छा लगा...आप तमाशबीनों की भीड़ में से नहीं हैं.

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  5. WWWWWWWWWWWWWWWWaaaaaaaaaaaaaaaaWWWWWWW.

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